+91-964-997-7006
9:00AM to 5:00
info@rastranirman.com
!!ॐ!! आयुर्वेद दो शब्द से मिलकर बना है – आयु + वेद (आयु का वेद ) । आयु अर्थात जीवन व वेद का मतलब ज्ञान से है । एेसा ज्ञान , जिससे जीवन / आयु के बारे मे पता चलता हो । “आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः “ अर्थात जो शास्त्र (विज्ञान) आयु (जीवन) का ज्ञान कराता है उसे आयुर्वेद कहते हैं। इसकी प्राचीनता इससे ही पता चलता है कि 9 लाख 28 हजार वर्ष पूर्व रामायण काल मे, लक्ष्मण का जीवन बचाने के लिएे भी आयुर्वेद का ही उपयोग किया गया था । चरक संहिता के प्रथम अध्याय के 40 वें श्लोक मे कहा आयुर्वेद को परिभाषित करते हुएे कहा गया है कि –
हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।
मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥
अर्थात जिस ग्रंथ में – हित आयु (जीवन के अनुकूल), अहित आयु (जीवन के प्रतिकूल), सुख आयु (स्वस्थ जीवन), एवं दुःख आयु (रोग अवस्था) – इनका वर्णन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं।
इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी ( बनारस ) के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। इस प्रकार यह ज्ञान धरती के मानवो को प्राप्त हुआ । यह धन्वंतरि के नाम पर ही आज दीपावली से पूर्व धनतेरस नाम का त्यौहार मनाया जाता है । जिसको भारत आज आयुर्वेद दिवस के रुप मना रहा है ।
विश्व मे सभी स्थानो पर आयुर्वेद का प्रयोग हजारो वर्षो से हो रहा है । इसके प्रमाण भी वैज्ञानिको को मिले है । आयुर्वेद का प्रमुख आधार – पंचतत्व व त्रिदोष ( वात, पित्त, कफ ) है । सभी मनुष्य के शरीर को त्रिदोषो के आधार पर ही तीन रुप मे गया है , जिसको शरीर की प्रकृति कहा जाता है । वात शरीर, पित्त शरीर व कफ प्रकृति वाला शरीर । यदि मानव के त्रिदोषो को संतुलित रखा जाऐ, तो वह मानव पूर्णतः स्वस्थय रह सकता है । आयु को कम करने वाले सभी कारक ( रोग ) , त्रिदोषो के असंतुलन से ही उत्पन्न होते है । यह त्रिदोषो को कैसे संतुलित किया जावे यह समस्त ज्ञान आयुर्वेद मे संग्रहित है ।
गौ-मूत्र व तुलसी त्रिदोष नाशक होने के कारण ही , सभी रोगो का समाधान कहे गएे है , व हम सभी के शरीर को यह त्रिदोषनाशको से लाभ मिलता है । आयुर्वेद के अनुसार , मनुष्य स्वस्थय तब नही होता है वह शाररिक रुप से स्वस्थय होता है । मनुष्य स्वस्थय तभी कहा जावेगा तब वह मन, मतिष्क व शरीर से भी स्वस्थय हो । आयुर्वेदिक जीवन शैली को नही अपनाने के कारण ही विश्व के 95 % से ज्यादा लौग रोग से ग्रसित है । वर्तमान मे, आयुर्वेद की दृष्टि से देखे तो लगभग 99 % लौग रोग्रस्त है । आयुर्वेद की अधिक जानकारी अाने वाली पोस्टो मे दी जावेगी ।
आयुर्वेद को केवल दवा देने वाला शास्त्र नही है, वरन् वह जीवन जीना सिखाता है । आयुर्वेद को अपने जीवन मे धारण करे, अपनी जीवनचर्या ( Daily life-style) मे समल्लित करे । आप सभी को पुनः आयुर्वेद दिवस की हार्दिक शुभकामनाएे । “महान् ऋषि धन्वंतरि” आप व आपके परिवार को उत्तम स्वास्थय दे ।
ॐ
जय हिंद
– दिनेश कुमार