Forest Development

मानव को जीवन के लिएे वायु, जल व भोजन आवाश्यक है । हमारे राष्ट्र की ही नही, आपितु विश्वव्यापी प्रमुख समस्या वायु प्रदूषण, गिरता जलस्तर व किसानो की कम होती आय ( कर्ज व आत्महत्या ) है । इसके समाधान के लिएे अलग-अलग नही , आपितु एक ही समाधान है ।

“वृक्ष”

सर्वप्रथम हम वायु प्रदूषण की समास्या पर बात करे तो एक ही उत्तर मिलता है वृक्षारोपण ।
कोई भी मानव बिना जल के नही रह सकता है । चाहे वह देश का राजा हो या ङाक्टर हो । आज हमारे राष्ट्र मे गिरते जल स्तर ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम चाहे हम लाखो करोङो रुपये क्यो न कमा ले , लेकिन बिना शुद्ध जल व हवा के हम सभी जीवित नही रह सकते है । यह भी कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध जल के लिएे ही होना वाला है । फिर हम सभी को यह समस्या समाधान पे क्यो नही सोचना चाहिएे । राजीव दीक्षित भाई ने कहा था यदि हाइङ्रोजन व आक्सीजन के मिलने से जल बनता तो फिर विश्व मे जल की समस्या नही होती । बास्तव मे यह पङने मे अच्छा लगता है कि जल का अणु , हाइङ्रोजन व आक्सीजन से बनता है लेकिन बास्तविक दुनियाँ मे नही । फिर हम जल की मात्रा कैसे बङा सकते है ।
भीषण गर्मी में हमें पेड़ ही राहत देते हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पेड़ों की जड़ों से पत्तियों तक पानी का होना होता है। पेड़ के आसपास नमी रहती है, इसलिए शीतल छाया मिलती है। वैसे भी पेड़ों में प्रकाश संश्लेषण की वनस्पति प्रक्रिया चलती रहती है। यानि जहरीली गैसों को सोखने और प्राण वायु आक्सीजन फेंकने का काम निरंतर चलता है। माना जाता है कि जितना पुराना पेड़ होगा, उसकी उतनी ही गहरी जड़ें होगी। वह पेड़ उतना ज्यादा ही प्रकाश संश्लेषण करेगा। इस प्रक्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने, आक्सीजन को बाहर फेंकने के साथ पेड़ों और उनकी पत्तियां से वाष्प बनकर उड़ती रहती है। जिस प्रकार पेड़ों से जहरीली गैसों को सोखने व आक्सीजन को बाहर फेंकने की प्रक्रिया नहीं दिखाई देती है। उसी तरह से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में पानी के वाष्प बनने की प्रक्रिया नहीं दिखती है। पेड़ों व अन्य जलीय श्रोतों से पानी वाष्प बनकर उड़ता भी नहीं दिखता है। वाष्प जो उड़कर जाती है, बदलों में जाकर मिल जाती है। तेज गर्मी पड़ती है तो समुद्र, नदी, झील का पानी सूर्य की तपिश से वाष्प बनकर उड़ जाता है। इसी वाष्पीकरण के चलते आसमान में बादल बनते हैं। उन बादलों में पेड़ों से वाष्प बनकर उड़ने वाला पानी भी मिल जाता है। इससे बादल भारी हो जाते हैं और बरस पड़ते हैं। इसीलिए जिस स्थान पर पेड़ ज्यादा होते हैं, वहां पानी ज्यादा बरसता है। राजस्थान में पेड़ों की कमी है, इसलिए वहां बादल तो बनकर उड़ते हैं। पेड़ों द्वारा वाष्पीकरण की प्रक्रिया पूरी नहीं होने के चलते बादल भारी नहीं होते हैं और हवा के साथ आगे निकल जाते हैं। माना भी जाता है कि जितने घने जंगल होते हैं वहां उतनी ज्यादा बारिश होती है।

किसानो की कम होती आय ( कर्ज व आत्महत्या )
यह समास्या का समाधान भी वृक्षारोपण ही है केवल अगर अपनी वैदिक कालिन सभ्यता के अनुसार वृक्षारोपण करे, प्राचीन वैज्ञनिक तरीको का प्रयोग करे । जिसमे फिर से राष्ट्र मे जंगलो का निर्माण करना है । राष्ट्र निर्माण ट्रस्ट प्राचीन कालीन वैज्ञनिक विधि का ही प्रयोग वृक्षारोपण मे करता है । जिससे उनकी जङे सैकङो मीटर तक की हो व वृक्षो की आयु भी सैकङो से लेकर हजारो वर्ष की होगी । जिससे जलस्तर शीघ्रता से बङता है । जिससे क्षेत्र का जलस्तर बङाना होता है उसका व्यापक स्तर पर अध्ययन कराके , वहाँ के लिएे उपयुक्त वृक्षो के द्वारा जंगलो का निर्माण करना ही राष्ट्र निर्माण ट्रस्ट का प्रमुख उद्देश्य है ।

वृक्षारोपण करने के तीन से पाँच वर्ष के बाद उसमे सभी असहाय , बेसहारा जानवर रह सकते है । जंगलो को इस तरीके से तैयार किया जा रहा है कि जहाँ उनके खाने पीने की भी भविष्य मे समस्या नही हो । आप सभी का सहयोग से राष्ट्र निर्माण ट्रस्ट का यह संकल्प है कि हम अपने भारत राष्ट्र मे व्याप्त यह समस्या २०५० तक समाप्त करेगे । जिसके अर्न्तगत २०५० तक देश मे एक लाख जंगल तैयार करना है ।

प्रथम चरण मे राजस्थान व उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रो को चुना गया है । जिसमे से झुनझुनु के पिलानी के चारो अोर १० जंगल विकसित किये जावेगे । जिनमे कम से कम ३ लाख वृक्ष लगाये जाने का लक्ष्य है । जिसमे अगस्त, २०१८ मे पिलानी के पास जंगल को विकसित करने के लिएे लगभग २५०० वीघा जमीन की अनुमति ली गई है ।
अधिक जानकारी व सहयोग के लिएे info@rastranirman.com पर मेल कर सकते है ।